सिंचाई की विधियाँ
- खुली सिंचाई / सतही सिंचाई प्रणालियाँ (गुरुत्वीय चलित विधियाँ)
इस विधि की सिंचाई क्षमता 50 से 60 प्रतिशत तक होती है।
यह विधि हल्की, भारी एंव समतल मृदाओं के लिए उपयुक्त है।
सतह सिंचाई की विधियाँ :-
(i) बाढ़ (फ्लड विधि) या जल प्लावन या तोड़ विधि –
यह विधि उन क्षेत्रों में उपयोग में ली जाती है जहाँ पानी प्रचुर मात्रा में एवं सस्ता उपलब्ध हो
यह विधि धान के खेतों के लिए उपयुक्त है।
हानियाँ – सिंचाई की अत्यन्त त्रुटिपूर्ण विधि है इस विधि में 50-75% जल व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है।
(ii) क्यारी विधि (Check basin)-
यह विधि सतह सिंचाई में सर्वाधिक प्रचलित विधि है।।
यह विधि सिंचाई के लिए सभी मृदाओ एवं सघन फसलों (गेंहू, मूंगफली) के लिये उपयुक्त है।
इस विधि में 2-3% ढलान वाली मृदाओं में सिंचाई की जा सकती है।
इस विधि की सबसे बडी कमी यह है कि खेत का एक बडा भाग मेडो के अन्तर्गत आ जाता है तथा श्रमिक की आवश्यकता अधिक होती है।
(iii) सीमान्त पट्टी/नकवार / सारा विधि (Border strip method)-
यह विधि चारागाह की सिंचाई के लिए अधिक उपयुक्त है।
इस विधि में खेत को छोटी मेडो द्वारा अनेक पट्टीयों में विभाजित कर दिया जाता है।
यह विधि बालू मृदाओं के लिए उपयुक्त नही है।
यह विधि 0.05 से 2% ढलान वाली मृदाओ में उपयुक्त है।
(iv) वलय / थाला विधि (Ring basin method) –
इस विधि में तने का सम्पर्क सीधा जल से नहीं होता तथा जल तने से कुछ दूर गोल घेरे में एकत्रित रहता है। जिससे वृक्ष का तना अधिक नमी से होने वाली व्याधियों से सुरक्षित रहता है।
फलदार वृक्षों की सिंचाई की प्रमुख विधि है।
(v) गहरी कुँड या नाली विधि (Deep furrow / Trench method)
- इस विधि का आमतौर पर पंक्तिबद्ध फसलों एवं सब्जियों की सिंचाई के लिये उपयोग किया जाता है।
- कुंड सिंचाई बलुई मृदा के अतिरिक्त सभी मृदाओं के लिये उपयुक्त है।
- यह विधि जड़ वाली फसलों के लिए उपयुक्त है जैसे गन्ना, मक्का, आलू, प्याज, मूली, शलजम व शक्करकन्द आदि।
(vii) सर्ज विधि (Surge method)-
यह विधि गुरूत्व जल पर आधारित है।
तथा यह सिंचाई विधि ON & OFF मोड श्रेणी पर आधारित है।
(viii) टाइफून (Typhoon) :-
- यह विधि बूंद-बूंद सिंचाई की रूपान्तरित विधि है।
- यह विधी महाराष्ट्र में गन्ने की फसल में प्रचलित है।
2.अघोसतह (Sub surface) सिंचाई :-
इस प्रणाली मे पानी मृदा की सतह पर न देकर इसकी अधोः स्तर मे दिया जाता है
कृत्रिम उप सतही सिंचाई प्रणाली मे पानी को खुली खाइयों या अधो भूमिगत पाइपो जैसे की टाइल नालियों या मोल नालियों या छिद्रित पाइपों के माध्यम से पौधो के जड़ तंत्र की मृदा में दिया जाता है।,
यह विधि केरल में नारियल के वृक्षों में काम में लेते है तथा गुजरात में (बलुई-दोमट मिट्टी) एवं जम्मू-कश्मीर में काली मिट्टी में सब्जी उगाने में काम में लेते है।
3. फव्वारा सिंचाई विधि (Sprinkler system)-
इस विधि में दाब के साथ वर्षा के रूप में पौधों को पानी उपलब्ध करवाया जाता है जिसे फव्वारा सिंचाई विधि कहते है।
उच्च pH पानी वाले क्षेत्रों के लिए यह विधि अनुपयुक्त है।
यह विधि धान व जूट को छोड़कर सभी फसलों के लिए उपयुक्त है।
यह विधि काली मृदाओं को छोड़कर सभी मृदाओं (मुख्यतः बालुई मृदाओं) के लिए उपयुक्त है।
ढलान वाले उबड – खाबड़ भूमियों (Undulating topography) के लिए उपयुक्त है।
इस विधि में सतही सिंचाई के अपेक्षा 25-50% तक पानी की अधिक बचत होती है।
(इस विधि की सिंचाई क्षमता 80 से 85 प्रतिशत होती है)
इसमें पानी का डिचार्ज 1000 लीटर / घन्टे होता है।
फव्वारा संयत्र में दाब 2.5-4.5kg/cm² होता है।
फव्वारा विधि में पानी की फुव्वांर नोजल से बनती है।
सतही विधि की तुलना में पानी की एक ही मात्रा से सिंचित क्षेत्र में 40% क्षेत्र की वृद्धि होती है।
मूंगफली, कपास, अन्य फसलें जो फूल नही गिरने के प्रति अति संवेदन शील नही है, के लिए उपयुक्त है।
यह फसलों को पाले और उच्च तापमान जो कि फसल उत्पादन और गुणवता को प्रभावित करते है से बचाता है।
स्प्रीकलर सिंचाई के अन्य रूप-
A. माइक्रो स्प्रिंकलर (सूक्ष्म फव्वारा)-
इस प्रणाली में छोटे फव्वारो के द्वारा पानी कम दबाव पर फव्वारो के रूप में पेड़ों के जड़ क्षेत्र के चारों और दिया जाता है।
B. मेक्रो स्प्रिंकलर (रेनगन)-
रेनगन, फव्वारा संयंत्र का संशोधित रूप है जिसमें कम पूंजी की
जरूरत होती है और पारम्परिक फव्वारा संयंत्र की तुलना में दूसरी फसलों के लिये संशोधित किया जा सकता है।
इसका उपयोग गन्ने की फसल पलवार के साथ किया जाता है
इसके अतिरिक्त लॉन के लिये सबसे आदर्श है
रेनगन संयत्र में दाब 3.5-5 kg/cm² होता है।
यह 27 मीटर परिधी तक पानी फेंकता है।
4. बूंद-बूंद सिंचाई (Drip Irrigation)
यह सिंचाई पद्धति इजराइल से लाई गई है।
बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली सिंचाई की नवीनतम विधि जो सब्जियों एंव फल वृक्षों व अधिक अन्तराल पर लगाई जाने वाली फसलों के लिए सिंचाई की श्रेष्ठ विधि है।
जिसका प्रयोग पानी की कमी और लवण की समस्या वाले क्षेत्रों में तेजी से लोकप्रिय होता जा रहा है।
इस विधि में पानी बहुत ही आर्थिक रूप से प्रयोग किया जाता है क्योकि इसमें गहरी टपकन और कम सतह वाष्पीकरण की वजह से जल हानि बहुत कम होता है।
बूंद-बूंद सिंचाई जल की कमी वालें क्षेत्रों, ऊबड-खाबड़ या खडी ढलान वाली स्थला कृतियों, कम मिट्टी गहराई वाले क्षेत्रों, जहां श्रम शक्ति बहुत मंहगा हो और फसल का मुल्य ज्यादा हो, के लिए सर्वोत्तम एवं उपयुक्त सिंचाई विधि है।
इस विधि में पानी डिसचार्ज के लिए इमिटिर्स (Emmiters/Trinkles) मुख्य घटक है
ड्रिप सिंचाई पद्धति में 1-8 ली./ ड्रिपर / घन्टे डिसचार्ज रेट होती है।
बूंद-बूंद सिंचाई में जल घुलनशील उर्वरक (फर्टीगेशन) व रासायनिक पोषक तत्वों (Chemigation) को पानी के साथ मिलाकर दे सकते है।
ड्रिप सिंचाई में दाब 1.5-2.5 किग्रा /सेमी होता है।
इस विधि में सतही सिंचाई विधि की तुलना में 50-70% पानी की बचत होती
इस विधि की सिंचाई जल उपयोग दक्षता क्षमता 90 से 95% होती है।
बूंद-बूंद सिंचाई के अन्य लाभः-
पौधो की वृद्धि और उपज में बढोतरी।
पानी, श्रम एवं ऊर्जा की बचत ।
समस्याग्रस्त मृदा के लिए सर्वोतम उपयुक्त।
खरपतवारों का बेहतर नियन्त्रण।
कृषण क्रियाओं के लिए उपयुक्त एवं सरल संचालन ।
लवणीय जल का उपयोग किया जा सकता है।
उवर्रक उपयोग दक्षता में बढोतरी।
उवर्रक एवं अन्य रासायनिक सुधारक व्यक्तिगत या अलग- अलग पौधो में प्रयोग कर सकते है।
