बीज के प्रकार (Type of Seeds)
उन्नत बीज की 5 श्रेणिया निम्न प्रकार है:-
- मूल केन्द्रक बीज (Nucleus Seed) या नाभिकीय बीज
यह किसी विकसित होने वाली नई किस्म का शुरूआती बीज है जो सबसे कम मात्रा में उपलब्ध रहता है।
इस वर्ग के बीजों में सर्वाधिक आनुवांशिक शुद्धता (100%) पाई जाती है।
इसे स्वयं प्रजनक द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों एंव अनुसंधान संस्थाओ में उत्पादित किया जाता है।
मूल केन्द्रक बीज के थेलों पर किसी भी रंग का टेग नही लगाया जाता है।
- प्रजनक बीज (Breeder seed):-
यह बीज मूल केन्द्रक बीज की संतति है।
इसे स्वयं प्रजनक द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों एंव अनुसंधान संस्थाओ में उत्पादित किया जाता है।
इसमें आनुवांशिक शुद्धता लगभग 100 प्रतिशत होती है।
इसकी थैलीयों पर सुनहरे पीले (Golden yellow) रंग का टैग लगा होता है।
- आधार बीज (Foundation Seed):-
प्रजनक बीज से जो बीज तैयार किया जाता है उसे आधार बीज कहते हैं।
यह बीज राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), पंजीकृत निजी संस्थाओं या बीज प्रमाणिकरण संस्था द्वारा तैयार किया जाता है।
आधार बीज की आनुवांशिक शुद्धता 99.5-99.9 (> 99%) प्रतिशत एवं भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए।
आघार बीज की थैलियों पर सफेद (White) रंग का टैग लगा होता है।
- पंजीकत बीज (Registered Seed) –
यह बीज आधार बीज अथवा स्वंय पंजीकृत बीज से तैयार किया जाता है।
इस बीज में संतोष जनक आनुवांशिक पहचान एवं शुद्धता पाई जाती है।
भारत में समान्यतः पंजीकृत बीज का उत्पादन नही किया जाता है तथा
आधार बीज से सीधा ही प्रमाणित बीज तैयार किया जाता है।
पंजीकृत बीज की थैलियों पर बैंगनी (Purple) अथवा नारंगी (Orange) रंगका टेग लगा होता है।
- प्रमाणित बीज (Certified Seed) :-
यह बीज सामान्यतः आधार बीज से तैयार किया जाता है।
यह बीज किसान को व्यापारिक फसल उत्पादन हेतु सर्वाधिक वितरित किया जाता है।
इसका उत्पादन स्वयं प्रमाणीकरण संस्था या उसकी देख रेख में किया जाता है। जैसे- सरकारी बीज निगम, बीज प्रमाणीकरण संस्था या स्वंय किसानों द्वारा प्रमाणित बीज तैयार किया जाता है।
प्रमाणित बीज की थैलियों पर नीले रंग का टैग लगा होता है।
इसमें आनुवांशिक शुद्धता एवं भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होती है।
बीज नियम (Seed act) –
संसद में 29/12/1966 में बिल पास या पारित हुआ तथा 2 अक्टूबर 1969 में लागु हुआ।
बीज उत्पादन एजेन्सी (Seed production agency) –
- राष्ट्रीय बीज निगम (NSC)
यह संस्था 1963 में पंजीकृत हुई।
इसके द्वारा विभिन्न फसलों के आधार बीजों का उत्पादन एवं वितरण होता है।
- राजस्थान राज्य बीज निगम
इसकी स्थापना 1978 में हुई थी
बीज की जीवन क्षमता परीक्षण (Seed viability tests)
- टेट्राजोलियम परीक्षण (Tetrazolium test)
2.3.5-टेट्राजोलियम क्लोराइड या ब्रोमाइड नामक रसायन के 1% घोल में बीजों को डुबोते है जिससे जीवित बीजों का रंग लाल या गुलाबी हो जाता है।
इस परिक्षण को जैविक टेस्ट (Biological test) भी कहते हैं।
इसमें जीवित बीज का रंग लाल या गुलाबी (फॉरमेजन के कारण) हो जाता है
2.पोटेशियम परमेंगनेट विधि (KMnO4 Test)
यह बीजों की जीवन क्षमता (viability) ज्ञात करने की गुणवत्ता युक्त विधि है।
इस विधि में बीजों को KMnO4 के घोल में डाला जाता है। जिससे घोल शोषित करने के बाद मृत बीजों का रंग बदल जाता है।
3.अन्य परीक्षण
ग्रोडेक्स परीक्षण इंडिगो कार्माइन विधि
बीज का वास्तविक मान (Real value) :-
यह शुद्धता प्रतिशत x अंकुरण प्रतिशत का मान है जिसको प्रतिशत में व्यक्त करते है।
बीज का वास्तविक मान 75 प्रतिशत से अधिक होना चाहिए।
प्रमाणित या उत्तम बीज की विशेषताएं:-
अनुवांशिक शुद्धता एवं भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए।
संकर मक्का में सर्वाधिक अंकुरण (90%), जौ, गेंहू सरसों एवं चना में न्यूनतम अंकूरण क्षमता 85% होती है।
धान, ज्वार व रिजंका में अंकुरण क्षमता 80 प्रतिशत होती है
मुंगफली, सोयाबीन एवं ग्वार में अंकुरण क्षमता 70% होती है।
कपास में न्यूतम अंकुरण क्षमता केवल 65% प्रतिशत होती है।
मूँग मोठ व उड़द में न्यूतम अंकुरण क्षमता केवल 75% प्रतिशत होता है।
. अधिकतम भण्डारण नमी प्रतिशतः गेंहू व जौ में 12%, चावल 13%. दालवाली फसलों में 9% एंव तेल वाली फसलों में 8-9%
बीज सूचकांक (Seed Index)-
100 बीजों के भार को बीज सूचकांक या सीड इन्डेक्स कहते है।
जिन फसलों के बीजों का आकार मोटा होता है उनमें परीक्षण भार (Test weight) की जगह सीड इन्डेक्स (Seed index) काम में लेते है। जैसे- चनेका सीड इन्डेक्स 16-27g होता
परीक्षण भार (Test weight):-
1000 बीजों के भार को परीक्षण भार कहते है।
जैसे धान 25g, बासमती धान 21g. गैहू 40g एवं फेलेरिस माइनर 2 है परीक्षण भार होता है।
सुसुप्ता (Dormancy) अवस्था:-
जीवित बीजों को अंकुरण के लिए आवश्यक सभी दशाएँ उपलब्ध होने पर भी अंकुरण नही होना, बीज की सुसुप्ता अवस्था कहलाती है।
बीजों में सुसुप्ता अवस्था आन्तरिक तथा बाहरी कारणो से होती है।
जंगली जई में तीनों प्रकार की सुसुप्ता अवस्था पाई जाती है।
बीजों की सुसुप्ता अवस्था तोड़ना –
- खुरचना (Scarification):-
बीज की बाहरी परत को रासायनिक, यांत्रिक एंव तापीय विधियों द्वारा तोडते या खुरचते है जिससे बीजों का सख्त आवरण टूटने से पानी एवं गैसों का विनिमय होता है।
KNO3 (1-3%) घोल बीज की बाहरी परत को तोड़ने के काम में लेते है।
थायो यूरिया (1%) एवं (GA) के छिड़काव से आलू की सुसुप्ता तोड़ना।
सल्फ्यूरिक एसिड से कपास बीजों (1:10) को 20 मिनट तक उपचारित कर सख्त आवरण हटाते है।
गर्म जल द्वारा 75 से 100 °C
- चिलिंग तापमान से उपचारित करना (Stratification)
इस विधि में बीजों को बौने से पूर्व 2-8°C तापमान पर 12 से 24 घण्टे तक रखते है।
सीड प्लाट टेकनीक (Seed plot technique):-
पुष्करनाथ ने 1967 में देश के उत्तरी मैदानी भागों में वायरस रोग मुक्त आलु बीज उत्पादन हेतु विकसित की।
भौतिक शुद्धता (Physical purity):-
इसका तात्पर्य बीजों का कंकड़ एवं टूटे हुऐ बीजों से मुक्त होना है।
भौतिक अशुद्धता को डोकेज भी कहते है।
प्रमाणित बीजो की भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए।
3.आनुवांशिक शुद्धता (Genetic purity)-
इसका तात्पर्य बीज दूसरी फसल एंव उसी फसल की अन्य किस्मों के बीजों से मुक्त होना है।
मुख्य फसल से दूसरी फसल या उसी फसल की अन्य किस्मों के पोधों (off-type) को हटाना रोगिंग कहलाता है।
आनुवांशिक शुद्धता के लिए ग्रो आउट परीक्षण करते हैं।
प्रमाणित बीजो की आनुवांशिक शुद्धता 99 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए।
ऑर्थोडोक्स बीज :-
ऐसे बीज जो कम तापमान एंव नमी पर लम्बे समय तक भंडारित करने पर भी जीवित रहते है।
उदाहरण अनाज एंव दाल वाली फसलों के बीज।
रीकेल्सीट्रेन्ट बीज
ऐसे बीज जो कम तापमान एंव नमी पर भण्डारित करने पर जीवित नहीं रहते
उदाहरण – आम एंव नारियल बींज।
पृथक्करण दूरी (Minimum isolation distance) :-
बीज उत्पादन में आनुवंशिक शुद्धता को बनाए रखने के लिए फसल की विभिन्न किस्मों के मध्य दूरी रखी जाती है।
बीज उपचार (Seed treatment):-
बीज उपचार क्रम = FIR
F = फफूंद नाशक, I = कीट नाशक R = कल्चर
फफूंद नाशक हेतु कार्बेन्डिज्म / वीटावेक्स (Systemic) एंव थाइरम (Contact) @ 2-3 g/kg बीज
कीटनाशक हेतु क्लोरोपाइरीफॉस (दीमक के लिए) @ 4 ml/kg बींज।
कल्चर के रूप में नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए राइजोबियम @ 1.5 kg/ha (दाल वाली फसलों) एंव एजेटोबेक्टर (गेंहू, जो, धान, कपास, तिलहनी फसले) व एजोस्पाइरीलम (मक्का, ज्वार, गन्ना बाजरा)।
फास्फोरस की घुलनशीलता के लिए PSB एंव अवशोषण व गमन के लिए VAM फफूंद काम में लेते है।
