मृदा विज्ञान (Soil Science)
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मृदा विज्ञान (Soil Science)

‘सॉयल’ शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के ‘सॉलम’ शब्द से हुई जिसका अर्थ फर्श (Floor) होता है। परिभाषा मृदा एक परिवर्तनशील प्राकृतिक पिण्ड है जो बारीक कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों व सूक्ष्म जीवों के संगठन से बनी है और पौधों को उगाने के लिए उचित माध्यम प्रदान करती है।

*19 फरवरी, 2015 को मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (MSCY) की शुरुआत हुई।

*2014 को FAO रोम द्वारा मृदा स्वास्थ्य वर्ष पोषित किया गया

→2015 को अन्तर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष घोषित किया गया जिसकी थीम ‘मृदा स्वस्थ जीवन स्वस्थ रखी गई।

→ भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान (1.1.S.S.) भोपाल (मध्यप्रदेश) में स्थित है।

*विश्व मृदा दिवस प्रतिवर्ष 5 दिसम्बर को मनाते हैं

*मृदा परीक्षण हेतु मृदा कणों का आकार 2.0 mm से कम होना चाहिए।

→ इस शाखा में मृदा के उद्भव वर्गीकरण एवं धरातल पर उसके वितरण का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

→ पेडोलोजी शब्द ग्रीक भाषा का है जिसका प्रथम प्रयोग वी.वी. डोकचेव ने किया अतः यह मृदा विज्ञान (Pedology) के जनक कहलाते हैं।

→ इस शाखा में मृदा का पादपों के साथ सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। के

→ इस विज्ञान में मृदा के विभिन्न गुणों का अध्ययन पौधों की वृद्धि, पोषण एवं उपज के संबंध में किया जाता है।

→ मृदा का निर्माण च‌ट्टानों एवं खनिजों के विघटन से होता है जिसके लिए रासायनिक, जैविक एवं भौतिक कारक जिम्मेदार होते हैं-

जलवायु (तापमान, वर्षा) सबसे महत्त्वपूर्ण कारक

जैव मण्डल जीव-जन्तु व सूक्ष्म जीव (Micro Organism)

पैतृक पदार्थ

उच्चावच

मृदा की आयु (Age of Soil या समय Time)

यह मृदा का एक उर्ध्व (Vertical) खण्ड है जो मृदा के सभी संस्तरों (Horizones) से गुजरता है तथा मृदा के पैतृक पदार्थों तक फैला होता है।

  1. ‘O’ संस्तर या कार्बनिक संस्तर-वनों की मृदाओं में जहाँ ह्यूमस की मात्रा 20% से अधिक हो
  2. A’ संस्तर या एलवियल खेती योग्य, सभी कृषि क्रियाएँ इसी संस्तर में होती है।
  3. E/A, संस्तर-इसे संस्तर में पोषक तत्व गतिशील होकर निक्षालित हो जाते हैं। सर्वाधिक निक्षालन वाला संस्तर।
  4. ‘B’ या इलूवियल संस्तर-पोषक तत्वों का गतिहीन जोन व सर्वाधिक अपक्षालन इसी संस्तर में होता है।
  5. ‘C’ संस्तर-पैतृक या अल्पविकसित मृदा का संस्तर।

सॉलम या वास्तविक मृदा-सॉयल प्रोफाइल के संयुक्त रूप से A व B संस्तर ‘सॉलम कहलाते हैं।

रिगॉलिथ (Regolith)– सॉयल फ्रोफाइल के संयुक्त रूप से A, B व C संस्तर ‘रिगॉलिथ कहलाते हैं। ☆

पेडॉन– सबसे छोटा भाग जिसको मृदा के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

1.कार्बनिक

-ठोस पदार्थ 50% 45% खनिज पदार्थ व 5% जीवांश पदार्थ)

-रन्ध्रावकाश 50% (25% वायु व 25% जल)

2.मृदा वायु का संगठन

नाइट्रोजन – मृदा में 79.2%, वातावरण में 79.0%

ऑक्सीजन – मृदा में 20.6%, वातावरण में 20.9%]

Co₂ – मृदा में 0.25%, वातावरण में 0.03%

→ मृदा 0-3-मात्रा वायुमण्डल की अपेक्षा में कार्बन-डाइ-ऑक्साइड (Co₂) की 8 से 10 गुना अधिक पाई जाती है।

→ खड़ी फसल में Co₂ की मात्रा परती भूमि की अपेक्षा 8 से 10 गुना अधिक पाई जाती है।

यह हल्की मृदाएँ होती हैं। ये मृदा मूँगफली, आलू आदि के लिए उपयुक्त है।

इनमें 70% अधिक बालू कण एवं 15% से कम क्ले कण होते हैं।

कण मोटे व बड़े ‘पोर स्पेरा’ के कारण जलधारण क्षमता बहुत कम होती है।

सिल्ट मृदाएँ (Silt Soils)-

  • इनमें 80% से अधिक सिल्ट कण एवं 12% से कम क्ले कण होते हैं।
  • यह मध्यम कणों वाली मृदा है अतः फसलों की अच्छी उपजाऊ होती है।

दोमट मृदाएँ (Lomy Soils)-

  • इस मृदा में बालू, सिल्ट और क्ले की मात्रा लगभग समान होती है।
  • अच्छे जल धारण वाली यह मृदा फसल उत्पादन की दृष्टि से सर्वोत्तम मानी जाती है।

मृत्तिका मृदाएँ (Clay Soils)-

  • इन मृदाओं में कम-से-कम 35% क्ले कण होते हैं।
  • इसके सबसे महीन कण होते हैं अतः जल निकास ठीक नहीं रहता।
  • सूखने पर दरारें बन जाती हैं।
  1. मृदा संरचना (Soil Structure)
  • [ मृदा कणा (बालू, सिल्ट व क्ले) का विभिन्न रूपों में व्यवस्थित (Arrangement) होने को ‘मृदा संरचना’ कहते हैं।
  • यह मृदा का अस्थायी गुण है क्योंकि इसमें परिवर्तन हो सकता है।
  • मृदा संरचना को कृषि क्रियाओं द्वारा बदल सकते हैं
क्र स कण /वर्ग का नाम कण का व्यास /आकार (मी. मी. में )
1कंकड़ /पत्थर 2.0 से अधिक
2मोटी बालू 0.2-2.0
3महीन बालू 0.02-0.2
4सिल्ट 0.02-0.002
5क्ले (मृतिका )0.002 से कम

1.प्लेटि संरचना – क्ले मृदा में

2.ब्लोकी संरचना – गहरी काली मृदा में

3.प्रिज्म संरचना – बालू मृदा में

4.क्रेम्बी संरचना – दोमट मृदा में सर्वाधिक

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